"सिसकती चाँदनी"
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भोर की आहट पर
ओसारे के बाहर पाँव रखा ---
दूब पर जमी ओस
चुभकर
नसों में उतर गई ---
चाँदनी
सिसकती रही
शायद सारी रात
इस अमावस में ।
---रामजी गिरि
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