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रविवार, 9 मार्च 2014
"सिसकती चाँदनी"
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भोर की आहट पर ओसारे के बाहर पाँव रखा --- दूब पर जमी ओस चुभकर नसों में उतर गई --- चाँदनी सिसकती रही शायद सारी रात इस अमावस में । ---रामजी गिरि